एक
इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गये मेरे आँसू
मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था|
जिनका दुःख लिखने की ख़ातिर
मिली न इतिहासों को स्याही,
क़ानूनों को नाखुश करके
मैंने उनकी भरी गवाही
जले उमर-भर फिर भी जिनकी
अर्थी उठी अँधेरे में ही,
खुशियों की नौकरी छोड़कर
मैं उनका बन गया सिपाही
पदलोभी आलोचक कैसे करता दर्द पुरस्कृत मेरा
मैंने जो कुछ गाया उसमें करुणा थी श्रृंगार नहीं था|
मैंने चाहा नहीं कि कोई
आकर मेरा दर्द बंटाये,
बस यह ख़्वाहिश रही कि-
मेरी उमर ज़माने को लग जाये,
चमचम चूनर-चोली पर तो
लाखों ही थे लिखने वाले,
मेरी मगर ढिठाई मैंने
फटी कमीज़ों के गुन गाये,
इसका ही यह फल है शायद कल जब मैं निकला दुनिया में
तिल भर ठौर मुझे देने को मरघट तक तैयार नहीं था|
कोशिश भी कि किन्तु हो सका
मुझसे यह न कभी जीवन में,
इसका साथी बनूँ जेठ में
उससे प्यार करूँ सावन में,
जिसको भी अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
कोई साँझ सुहागिन दिया
बाले ज्यों तुलसी पूजन में,
फिर भी मेरे स्वप्न मर गये अविवाहित केवल इस कारण
मेरे पास सिर्फ़ कुंकुम था, कंगन पानीदार नहीं था|
दोषी है तो बस इतनी ही
दोषी है मेरी तरुणाई,
अपनी उमर घटाकर मैंने
हर आँसू की उमर बढ़ाई,
और गुनाह किया है कुछ तो
इतना सिर्फ़ गुनाह किया है
लोग चले जब राजभवन को
मुझको याद कुटी की आई
आज भले कुछ भी कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा
नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था|
दो
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा
काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा
जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा |
तीन
गंगा की कसम, जमुना की कसम, यह ताना-बाना बदलेगा !
तू खुद तो बदल-तू खुद तो बदल, बदलेगा ज़माना बदलेगा !!
यह मुर्दा नुमायश भूखों की यह उजड़े चमन बेकारों के
जूठन पे सड़क की जीते हुए शहजादे सुर्ख बहारों के
यह होली खून पसीने की नीलामी हुस्न हसीनों की
बेजार ना हो बेजार ना हो यह सारा फ़साना बदलेगा |
ऊँचें हैं इतने महल की हर इंसान का जीना मुश्किल है
मंदिर मस्जिद की बस्ती में ईमान का जीना मुश्किल है
रप्तार ज़रा कुछ और बढ़ा आवाज ज़रा कुछ और बढ़ा
फिर शीशा नहीं साकी ही नहीं सारा मयखाना बदलेगा |
सूरज की मशाले थामे हुए, जिस दम की जवानी चलती है
पूरब से लगाकर पश्छिम तक, सबकी तकदीर बदलती है
तूफ़ान को आँख दिखने दो, बिजली को तड़ककर आने दो,
जीने का तरीका बदलेगा,मरने का बहाना बदलेगा !!
गंगा की कसम, जमुना की कसम, यह ताना-बाना बदलेगा !
तू खुद तो बदल-तू खुद तो बदल, बदलेगा ज़माना बदलेगा !!
चार
ताकत वतन की हमसे है
हिम्मत वतन की हमसे है
इज्ज़त वतन की हमसे है
इंसान के हम रखवाले |
पहरेदार हिमालय के हम, झोंके हैं तूफ़ान के
सुनकर गरज हमारी सीने फट जाते चट्टान के
ताकत वतन की हमसे है...
सीना है फौलाद का अपना, फूलों जैसा दिल है
तन में विन्ध्याजल का बल है, मन में ताजमहल है
ताक़त वतन की हमसे है...
देकर अपना खून सींचते देश की हम फुलवारी
बंसी से बन्दूक बनाते हम वो प्रेम पुजारी
ताकत वतन की हमसे है...
आकर हमको कसम दे गई, राखी किसी बहन की
देंगे अपना शीश, न देंगे मिट्टी मगर वतन की
ताक़त वतन की हमसे है...
खतरे में हो देश अरे तब लड़ना सिर्फ धरम है
मरना है क्या चीज़ आदमी लेता नया जनम है
ताकत वतन की हमसे है...
एक जान है, एक प्राण है सारा देश हमारा
नदियाँ चल कर थकी रुकी पर कभी न गंगा धरा
ताक़त वतन की हमसे है...
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