सोमवार, 19 अप्रैल 2021

मेरे मन के गीत : 1- किशन सरोज



 किशन सरोज 

                1

      तुम निश्चिन्त रहना 


कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित

सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना.


धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम

छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन

बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर

पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन


अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित

यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना.



दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें

मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया

वह नगर, वे राजपथ, वे चौंक-गलियाँ

हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया


थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित

छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना.



लो विसर्जन आज वासंती छुअन का

साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन

गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में

उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन


उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित

मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना |



                       2

नागफ़नी आँचल में बाँध सको तो आना

धागों बिन्धे गुलाब हमारे पास नहीं।


हम तो ठहरे निपट अभागे

आधे सोए, आधे जागे

थोड़े सुख के लिए उम्र भर

गाते फिरे भीड़ के आगे


कहाँ-कहाँ हम कितनी बार हुए अपमानित

इसका सही हिसाब हमारे पास नहीं।


हमने व्यथा अनमनी बेची

तन की ज्योति कंचनी बेची

कुछ न बचा तो अँधियारों को

मिट्टी मोल चान्दनी बेची


गीत रचे जो हमने, उन्हें याद रखना तुम

रत्नों मढ़ी किताब हमारे पास नहीं।


झिलमिल करती मधुशालाएँ

दिन ढलते ही हमें रिझाएँ

घड़ी-घड़ी, हर घूँट-घूँट हम

जी-जी जाएँ, मर-मर जाएँ


पी कर जिसको चित्र तुम्हारा धुँधला जाए

इतनी कड़ी शराब हमारे पास नहीं।


आखर-आखर दीपक बाले

खोले हमने मन के ताले

तुम बिन हमें न भाए पल भर

अभिनन्दन के शाल-दुशाले


अबके बिछुड़े कहाँ मिलेंगे, यह मत पूछो

कोई अभी जवाब हमारे पास नहीं।



                                           - किशन सरोज  

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें