दिल्ली लुटने वाली है
भारत में स्वारथ की ऐसी आंधी उठने वाली है |
जाग देश रखवालों से ही दिल्ली लुटने वाली है ||
आये कितने युग पुरुष यहाँ राहें दिखला कर चले गये,
हम जियें अत: वे मात्रभूमि पर शीश चढ़ाकर चले गये |
झुकने न दिया मस्तक अपना बागी कहलाकर चले गये,
अपने सीने की धरती पर झंडा फहराकर चले गये |
उनके बलिदानों पर इनकी चाल सियासी गाली है ||
जाग देश ||
है किसको परवाह यहाँ अब लाल किला या ताज बिके,
गंगा यमुना की लहरें बिक जायें या पर्वरातराज बिके |
फूल- फूल हर कलि -कलि का तूफानी अंदाज बिके,
बिक जाए केसरिया चुनर चाहे माँ की लाज बिके |
सावधान! पांवों की अपनी धरती बिकने वाली है ||
जाग देश........ ||
इसकी भी परवाह नहीं सोने के भाव अनाज बिके,
दिन भर की मजदूरी की कीमत पर आलू, प्याज बिके |
तन ढकने के लिए जतन से पहले तन की लाज बिके,
रोजी रोटी के चक्कर में चूल्हा, चौका, छाज बिके |
ठग चोरों की बढ़ी सम्पदा , निर्धन की बदहाली है ||
जाग देश........ ||
निर्माणों की कल्प -कथायें खो जाती अफवाहों में,
पीढ़ी दर पीढ़ी जनता मर जाती यहाँ अभावों में |
स्वर्ग बना देंगें गाँवों को करते शोर चुनावों में,
पर शिक्षित नारी पनिहारिन- घसिहारन ही गाँवों में |
स्वतन्त्र्तता की स्वर्ण जयंती पर कितनी कंगाली है ||
जाग देश............... ||
लोकतंत्र की रक्षा की गतिविधियाँ सारी जाली हैं,
जनता की देहरी पर इनका हर ऑंसू घडियाली है |
बहुमत की रक्तिम बूंदों से जब भर जाती प्याली है,
जलते दिये निठुर अधरों पर मनती रोज दिवाली है |
इनको बतला दो अब इनकी दाल न गलने वाली है ||
जाग देश..........||
-- रामलखन पटेल
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें