सोमवार, 19 अप्रैल 2021

जनवादी गीत संग्रह : 'लाल स्याही के गीत' 30-- रामलखन पटेल


                 


दिल्ली लुटने वाली है 


भारत में स्वारथ  की ऐसी आंधी उठने  वाली है | 

जाग देश रखवालों से ही दिल्ली लुटने वाली है || 


आये कितने युग पुरुष यहाँ राहें दिखला कर चले गये, 

हम जियें अत: वे मात्रभूमि पर शीश चढ़ाकर  चले गये | 

झुकने न दिया मस्तक अपना बागी कहलाकर चले गये, 

अपने सीने की धरती पर झंडा फहराकर चले गये |

उनके बलिदानों  पर  इनकी चाल सियासी गाली है || 

जाग देश ||


है किसको परवाह यहाँ अब लाल किला या ताज बिके, 

गंगा यमुना की लहरें बिक जायें या पर्वरातराज बिके |

फूल- फूल हर कलि -कलि का तूफानी अंदाज बिके,

बिक जाए केसरिया चुनर चाहे माँ की लाज बिके |

सावधान! पांवों की अपनी धरती बिकने वाली है || 

जाग देश........  || 


इसकी भी परवाह नहीं सोने के भाव अनाज बिके, 

दिन भर की मजदूरी की कीमत पर आलू, प्याज बिके |

तन ढकने  के लिए जतन से पहले तन की लाज बिके,  

रोजी रोटी के चक्कर में चूल्हा, चौका,  छाज बिके |  

ठग चोरों की बढ़ी सम्पदा , निर्धन की बदहाली है ||

जाग देश........ || 


निर्माणों की कल्प -कथायें खो जाती अफवाहों में, 

पीढ़ी  दर पीढ़ी जनता मर जाती यहाँ अभावों में |

स्वर्ग बना देंगें गाँवों  को करते शोर चुनावों में, 

पर शिक्षित नारी पनिहारिन- घसिहारन ही गाँवों में |  

स्वतन्त्र्तता की स्वर्ण जयंती पर कितनी कंगाली है || 

जाग देश............... || 


लोकतंत्र की रक्षा की गतिविधियाँ सारी जाली हैं,  

जनता की देहरी पर इनका हर ऑंसू घडियाली है |  

बहुमत की रक्तिम बूंदों से जब भर जाती प्याली है,  

जलते दिये निठुर अधरों पर मनती रोज दिवाली है |

इनको बतला दो अब इनकी दाल न गलने वाली है || 

जाग देश..........|| 

            -- रामलखन  पटेल 


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