अंशु मालवीय
1
कर्ज़ की हमको दवा बताई,कर्ज़ ही थी बीमारी
साधो ! करमन की गति न्यारी ।
गेहूँ उगे शेयर नगरी में,खेतों में बस भूख उग रही
मूल्य सूचकांक पे चिड़िया,गाँव शहर की प्यास चुग रही
करखानों में हाथ कट रहे मक़तल में त्यौहारी साधो !करमन की गति न्यारी ।
बढ़ती महंगाई की रस्सी, ग्रोथ रेट बैलेन्स बनाए
घट-बढ़ के सर्कस के बाहर,भूखों के दल खेल दिखाए
मेहनत-क़िस्मत-बरकत बेचें सरकारी व्योपारी
साधो !करमन की गति न्यारी ।
शहर-शहर में बरतन मांजे, भारत माता ग्रामवासिनी
फिर भी राशनकार्ड न पाए,हर-हर गंगे पापनाशिनी
ग्लोबल गाँव हुई दुनिया में, प्लास्टिक की तरकारी
साधो ! करमन की गति न्यारी !
2
मन्दिर बन जाये या मस्जिद असग़र का ठेला लगना है
राजू फेरी पर जाएगा....
वही धूप कल भी निकलेगी,कल भी कपड़े तार पे होंगे
कल भी मैं ऐसा ही मिलूंगा,कल भी प्रश्न सरकार से होंगे
दूध की नदियाँ नहीं बहेंगी,फ़लक से न लड्डू बरसेंगे
जिन पर है वो मस्त फिरेंगे,जो तरसे हैं वो तरसेंगे
मन्दिर बन जाये या मस्जिद,दिन भर ख़ाक छानता मानुष
शाम को अपने घर जाएगा,अगर चार दिन चुप रह लोगे
जीवन भर चिल्ला पाओगे,मगर अभी बेकार चीख़ कर
महामूर्ख ! तुम क्या पाओगे ?
इक-दूजे में प्यार बाँट लो,राजनीति का चक्कर छोड़ो
तुम अपने को ठीक रखो बस,दुनिया का दुनिया पर छोड़ो मन्दिर बन जाये या मस्जिद, हंगामे में जेल गए तो बच्चा भूखा मर जायेगा |
3
जब से भूख तुम्हारी जागी
धरती बिकी
बिकी धरती की संतानें हतभागी
पांड़े कौन कुमति तोहे लागी !
धरती के भीतर का लोहा
काढ़ा, हमने तार खिंचाए
तार पे फटी दिहाड़ी लटकी
बिजली की विरुदावलि गाए
जब से भूख तुम्हारी जागी
लोहा बिका
बिकी लोहे की संतानें हतभागी !
पांड़े कौन कुमति तोहे लागी !
धरती के भीतर का पानी
खींचा हमने खेत सधाए
पानी बंधुआ बोतल में
साँस नमी की घुटती जाए
जब से भूख तुम्हारी जागी
पानी बिका
बिकी पानी की संतानें हतभागी
पांड़े कौन कुमति तोहे लागी !
धरती के भीतर का कोयला
खोदा और फ़र्नेस दहकाए
चिमनी ऊपर बैठ के कोयल
कटे हाथ के असगुन गाए
जब्से भूख तुम्हारी जागी
कोयला बिका
बिकी कोयले की संतानें हतभागी
पांड़े कौन कुमति तोहे लागी !
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