एक
माहेश्वर तिवारी
बोलेगा मजदूर देश का बोलेगा |
दोनों हाथों पर दुनिया को तोलेगा |
बहुत दिनों तक सपने
प्यारे प्यारे देखे
कुर्सी के बहकाने वाले
झूठे मोहक नारे देखे
लेकिन अब चुपचाप नहीं रहने वाला है
सुख के सभी बंद दरवाजे खोलेगा | बोलेगा मजदूर ....
नेता अफसर साहूकारों
वाली साजिश नहीं चलेगी
अंधियारे की दाल यहां पर
किसी तरह से नहीं गलेगी
सुबह हो गयी शोषण मुक्त समाज बनेगा
धरती डोल रही है, पर्वत डोलेगा |
बोलेगा मजदूर देश का बोलेगा |
दो
किरणें फूटी,हुआ विहान |
जाग रहा मजदूर किसान ||
मेहनतकश की दुनिया भर में जात एक है
जुल्म सितम की सख्त अंधेरी रात एक है
खिसकेगी काली चट्टान |
जाग रहा मजदूर किसान ||
अपना सूरज अपनी धरती मांग रहा है
कल कारखाने ऊसर परती मांग रहा है
चमक रहा है लाल निसान |
जाग रहा मजदूर किसान ||
पर्वत काट रहे हैं पानी लाने को
सारी धरती को खुशहाल बनाने को
पोंछा पसीना, झाड़ थकान |
जाग रहे मजदूर किसान ||
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